क़रीब पांच साल बाद चुनावी माहौल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर अयोध्या के आस-पास होंगे. फ़र्क़ ये है कि पांच साल पहले यानी 2014 में और उससे भी पांच साल पहले यानी 2009 में वो फ़ैज़ाबाद ज़िले में आए थे लेकिन अब ज़िले का ही नाम बदलकर अयोध्या हो गया है.
ये बात अलग है कि अयोध्या ज़िले के जिस रामपुर गांव में वो रैली करेंगे उसकी अयोध्या से दूरी क़रीब तीस किलोमीटर है जबकि इससे पहले रैली स्थलों की दूरी अयोध्या क़स्बे से महज़ दस किलोमीटर ही थी.
अयोध्या-फ़ैज़ाबाद लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार और मौजूदा सांसद लल्लू सिंह कहते हैं कि व्यस्तता के कारण प्रधानमंत्री अयोध्या नहीं आ पा रहे हैं, “उन्हें दो ज़िलों की रैलियों को संबोधित करना है. उसके बाद भी उनके कई कार्यक्रम लगे हैं. इसलिए अयोध्या नहीं आ सकेंगे. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि इससे उनकी आस्था पर सवाल उठता है या फिर आस्था प्रभावित होती है.”
हालांकि लल्लू सिंह के पास इस सवाल का कोई सार्थक जवाब नहीं है कि ‘प्रधानमंत्री रहते हुए पांच साल के दौरान मोदी अयोध्या क्यों नहीं आए?’ यह सवाल न सिर्फ़ अयोध्या के आम निवासी बल्कि साधु-संत भी पूछ चुके हैं और कई बार संतों ने इस बात से नाराज़गी भी जताई है.
दरअसल, अयोध्या और भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक संबंध भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक पहचान दिलाने में अयोध्या और राम मंदिर की कितनी भूमिका रही है, यह किसी से छिपा नहीं है. साल 1991 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जब पहली बार कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी थी तो पूरा मंत्रिमंडल शपथ लेने के तत्काल बाद अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए आया था.
इसके अलावा दो साल पहले उत्तर प्रदेश में जब से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनी है तब से अयोध्या के विकास के लिए न सिर्फ़ तमाम घोषणाएं की गईं बल्कि दीपावली के मौक़े पर भव्य कार्यक्रम और दीपोत्सव का आयोजन भी किया गया. मुख्यमंत्री योगी तो आए दिन अयोध्या आते रहते हैं.
ऐसे में पहली बार केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बतौर प्रधानमंत्री पूरा कार्यकाल बिता देने के बावजूद अयोध्या न आना और वो भी अयोध्या के पास चुनावी रैली को संबोधित करके चले जाना, न सिर्फ़ चौंकाता है बल्कि खटकता भी है.
हालांकि प्रधानमंत्री पिछले पांच साल में दर्जनों बार उत्तर प्रदेश की यात्रा पर आए हैं और वाराणसी से ही सांसद होने के नाते वाराणसी कई बार आए हैं. यही नहीं, साल भर पहले तो अयोध्या से महज़ कुछ किमी दूर कबीरदास की समाधि स्थल मगहर तक आ गए थे लेकिन अयोध्या उस वक़्त भी नहीं आए.
नरेंद्र मोदी की ओर से अयोध्या की इस कथित उपेक्षा की चर्चा क्या बीजेपी नेताओं, आरएसएस से जुड़े संगठनों और आस्थावान हिंदुओं के बीच नहीं होती होगी, जो बीजेपी को एक तरह से ‘राम मंदिर समर्थक पार्टी’ के तौर पर देखते हैं?
इस सवाल के जवाब में लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं, “नरेंद्र मोदी कट्टर हिंदुओं को अपने हिंदू हृदय सम्राट होने का प्रमाण पत्र गुजरात में दे चुके हैं. उसे पता है कि ये सब चुनावी सभाओं की विवशता हो सकती है लेकिन मोदी जी हिंदुओं के हितैषी हैं, इसमें वो संदेह की गुंजाइश फ़िलहाल नहीं देखता.”
योगेश मिश्र कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ख़ुद भले ही अयोध्या न आएं या अयोध्या की चर्चा न करें, लेकिन ऐसा नहीं है कि ये उनके एजेंडे में नहीं है. उनके मुताबिक़, बीजेपी के तमाम नेता जो अपनी आक्रामक शैली में अयोध्या या राम मंदिर की चर्चा करते हैं, ये बिना नरेंद्र मोदी की मौन स्वीकृति के नहीं हो सकता.
वहीं अयोध्या में स्थानीय पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि अयोध्यावासी इस बात की चर्चा नहीं करते. महेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक़, इस बात की न सिर्फ़ चर्चा होती है बल्कि लोगों में नाराज़गी भी रहती है.
वो कहते हैं, “मोदी जी रामनगरी अयोध्या में भले ही न आ रहे हों लेकिन अयोध्या जनपद में वो जिस गांव से रैली को संबोधित करेंगे उसका नाम रामपुर ही है. अयोध्या के न सिर्फ़ आम लोग बल्कि साधु-संत भी मोदी के अयोध्या न आने से नाराज़ हैं. लेकिन वो अपनी नाराज़गी जताएं किससे?”
महेंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि प्रियंका गांधी पिछले दिनों जब अयोध्या में हनुमानगढ़ी का दर्शन करने गईं लेकिन रामलला के दर्शन करने नहीं पहुंचीं तो बीजेपी वालों ने ख़ूब हो-हल्ला मचाया था लेकिन अब वो इस बात का जवाब क्या देंगे कि ‘मोदी जी ने तो अयोध्या जाने और हनुमानगढ़ी के दर्शन करने की भी हिम्मत नहीं जुटाई, रामलला के दर्शन करने क्या जाएंगे.’
हालांकि इसका एक दूसरा पक्ष भी है. कुछ लोग इस मामले में प्रधानमंत्री पर ‘छवि सुधारने की कोशिश’ का आरोप लगाते हैं लेकिन कुछ बचाव करते भी नज़र आते हैं. अयोध्या में रहने वाले आरएसएस के प्रवक्ता शरद शर्मा कहते हैं, “निश्चित तौर पर अयोध्यावासियों को इस बात का मलाल है कि मोदी जी अयोध्या क्यों नहीं आए.”
शरद शर्मा कहते हैं कि महंत नृत्यगोपाल दास के जन्म दिवस पर दो बार प्रधानमंत्री को आमंत्रित भी किया गया लेकिन इस आमंत्रण के बावजूद उन्होंने अयोध्या आने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
बीजेपी के भी तमाम नेता इस बारे में खुलकर तो कुछ नहीं कहते लेकिन दबी ज़ुबान में वो इससे ख़ुश नज़र नहीं आते. अयोध्या में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता को पिछले साल कबीर की समाधिस्थल मगहर तक आने के बावजूद अयोध्या न आने और भाषण में अयोध्या या राम मंदिर की चर्चा तक न करने से बेहद तकलीफ़ है. नाम न छापने की शर्त पर वो सीधे तौर पर आरोप लगाते हैं कि ‘मोदी जी की अयोध्या या फिर राममंदिर में कोई दिलचस्पी ही नहीं है.’
अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को कारसेवा में शामिल होने का दावा करने वाले 45 वर्षीय संत प्रेमशंकर दास कहते हैं, “राम मंदिर का दर्द तो वही जान सकता है जिसने लाठियां खाईं, गोली खाई, जेल गया, जीवन बर्बाद किया और इसके बावजूद वो अपने राम लला को अपनी ही पार्टी की सरकार में तंबुओं में पड़ा देख रहा है. जो इन सबमें शामिल ही नहीं रहा, वो क्या जानेगा.”
बीजेपी ने इस बार अपने संकल्प पत्र में अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण को भी प्राथमिकता में रखा है. ये ज़रूर है कि पार्टी ने मंदिर निर्माण को संविधान के दायरे में रहकर ही पूरा करने का भरोसा दिया है. पार्टी का कहना है कि वह मंदिर निर्माण के लिए सभी संभावनाएं तलाशेगी और इसके लिए सभी ज़रूरी कोशिश करेगी.
मोदी के अयोध्या शहर में न जाने और रामलला के दर्शन न करने पर सवाल ज़रूर उठ रहे हैं लेकिन उनकी इस यात्रा को राजनीतिक लिहाज़ से काफ़ी अहम माना जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यदि रामलला से दूर रहकर भी मोदी राम मंदिर के बारे में कुछ बोलते हैं तो इसका संदेश दूर तक जाएगा और अगले तीन चरणों के मतदान वाली सीटों पर बीजेपी इसका फ़ायदा ले सकती है. योगी सरकार अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर की भव्य प्रतिमा लगाने की घोषणा करके अपनी प्राथमिकता पहले ही स्पष्ट कर चुकी है.
अयोध्या ज़िले में एक मई को ही सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की संयुक्त महारैली भी दरियाबाद के बड़ेला बाज़ार चैराहे पर होनी है जिसमें बसपा प्रमुख मायावती, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और आरएलडी के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह संबोधित करेंगे.
लोगों की निगाहें इस बात पर भी हैं कि क्या गठबंधन के नेता भी सिर्फ़ रैली तक ही सीमित रहेंगे या फिर अयोध्या के मंदिरों का भी रुख़ करेंगे.
समीरात्मज मिश्र,
बीबीसी से साभार